"मूंगफली / राग तेलंग" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राग तेलंग }} <Poem> मूंगफली किसी के इंतज़ार के दौरान ...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
02:04, 3 अप्रैल 2009 के समय का अवतरण
मूंगफली किसी के इंतज़ार के दौरान
एक घड़ी का काम करती हैं
किसी के देर से आने पर
शिकवा नहीं रह जाता
अगर हाथ में हों कुछ मूंगफली
सदियों से गरीबों को बादाम का सुख दिया है
मूंगफली ने चंद रेजगारी के बदले
जो उगाता है,जो ज़मीन से बाहर निकालता है,
जो भूनता है, जो खरीदता है
उन सबको समवेत सलाम करती हैं मूंगफली
उनके छिलकों के भीतर से खुलती हैं खिड़कियां
उम्मीदों की, सपनों की, इरादों की, सफलताओं की
हमने भी कीं कई बार
मूंगफली की गरमागरम पार्टियाँ चलते-फिरते
हम भी बतियाये कुछ ज़्यादा मूंगफली ख़त्म होते तक
हम हुए कुछ और बदमस्त मूंगफली खाने के बाद
हमें कुछ और ज़्यादा जिलाया मूंगफली ने धरती पर
बहुत खुशी की ख़बर आने से पहले,
नीम तनहाइयों के दौर में,
दोस्तों की खिलखिलाहट में डूबते समय
हाथ को थामे हुए थीं तो बस मूंगफली
भीड़ के समुद्र में गुम हो जाना अच्छा लगता था
मूंगफली के कोन को पतवार की तरह थामकर
प्रवचनों के दौरान
चीन के उस साम्यवादी ईश्वर के विरुद्ध
सुना हमने प्रलाप
जिसने दरियादिली से भेजी थीं मूंगफली हमारे मुल्क में
हमने अपनी सामाजिकता के दायरे को बढ़ाते हुए
और पुख़्ता किया
मूंगफली को ईंट-गारा बनाकर
अपनी जेबें पूरी खाली कर दीं हमने
बच्चों में मूंगफली बांटकर और
आवारा राजकपूर की तरह बढ़ गए आगे
दूसरी और गलियों को आबाद करने
मूंगफली के बहाने
दुनिया में सबसे प्यारा इंसान था वो
जिसने लगाया ठेला मूंगफली का हमारे लिए और
स्नेहवश दीं दो-चार मूंगफली ज़्यादा
बिना कोई अहसान जताए
कहा हमसे `लीजिए साहब `
हाँ! जनाब
हम फक्कड़ भी
कहलाए `साहब´
मूंगफली की वजह से ।