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"परीक्षा / राग तेलंग" के अवतरणों में अंतर

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02:07, 3 अप्रैल 2009 के समय का अवतरण

हम सब दिल के मरीज हैं
ऐसा हमें शक़ हुआ परीक्षा के दिन

बदल जाता था हमारा समूचा व्यक्तित्व उस एक दिन

हम एक-दूसरे से छुपा रहे थे विषय की महत्वपूर्ण जानकारियां
कोशिश कर रहे थे ऐसे-ऐसे अध्यायों की आड़ लेकर
जिससे लगे कि हम इस द्वंद्व युद्ध में पटखनी दे सकते हैं उसी साथी को
जिसके साथ कितनी तो बार गलबहियां डालकर
लंबी सड़क पर चलते हुए दूर किया था अपना अकेलापन

कितना बदल गया ऐसा रिश्ता परीक्षा के दिन !

चाकू की तेज़ धार से भी ख़तरनाक़ था
परीक्षा में असफल हो जाने का डर
जो कई बार
रेल की पटरियों या टिक ट्वेंटी या फिनाइल के विकल्पों को
आजमाने को मजबूर करता

हमें कभी पता नहीं चला
किसके विरूद्ध छिड़ी थी जंग
जो मांएं विदा करती थीं हमें
पेन-रबर-पेंसिल जैसे हथियारों की
ठीक-ठीक हालत के बारे में तस्दीक करते हुए

बड़ा तकलीपफ़देह था ऐसा इम्तहान
जिसमें हम जो जानते थे वह नहीं पूछा जाता
बल्कि कोशिश ये दिखती
जो हम नहीं जानते वह पूछा जाए


हमें ही हमारी बुद्धि पर तरस खाने को
मजबूर किया जाता परीक्षा के द्वारा
परीक्षा हॉल में
प्यास या पेशाब लगने जैसी सबसे स्वाभाविक क्रियाएं
संदेह का कारण बन जातीं
मुजरिम की निगाह से देखे जाते हम
और हमारे वही पूजनीय शिक्षक
एक पल को क़ातिलों के पैरोकार मुंसिफ से लगते

वहीं उड़न दस्तों पर सवार होकर अचानक आते थे
मैकाले की परीक्षा व्यवस्था के आतंकवादी पहरुए
जो ध्वस्त करते थे ज़ेहन में घुसकर
हमारे आत्मविश्वास का किला

परीक्षा देकर भारी कदमों से वापस लौटते हुए
हम सोचते थे
अगर ईश्वर या खुदा का सहारा न होता तो
किसके भरोसे छोड़ते
परीक्षाफल आते तक का वह क्रूर और जानलेवा समय

तथाकथित रूप से सफल होकर
परीक्षा के मकड़जाल से
बाहर आ चुकने के बाद भी
हम पहचान नहीं पाए
अपने दुश्मन को और
आज हम भी विदा कर रहे हैं
अपने लाड़ले अभिमन्यु को देहरी पर खड़े होकर

अब कैसे बताएं साफ-साफ
कौरवों के बारे में
जाओ बच्चो! जाओ
कुरुक्षेत्र की ओर
समय हो रहा है !