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"तुरपाई / राग तेलंग" के अवतरणों में अंतर

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19:46, 3 अप्रैल 2009 के समय का अवतरण

जीवन में
मुश्किलों में से होकर गुज़रना ही पड़ता है
यहां कोई भी रास्ता
शार्टकट नहीं है

कभी रूई के फाहों की तरह
तो कभी तपते लोहे की सलाख की तरह
होते हैं आंसू
खुशी में भी
ग़म में भी आएंगे ये

उठो !
इस नर्म और गुनगुनी धूप की तुतलाहट सुनो
देखो !
तुम्हारा विषाद घुल गया है इसके बोलने से

अबकी ठंड में
पहनी जाने वाली सदरियों में
तुरपाई करनी है

सुई में बड़ी देर से धागा डल नहीं रहा है

किसीने हौले से तुम्हें पुकारा है
सुनाई दिया क्या ?