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18:48, 13 अप्रैल 2009 के समय का अवतरण

प्यासे को पानी,
भूखे को दो रोटी
मौला दे! दाता दे!!

आसमान की बात न जानूं
जनगण भाग्य विधाता दे!
धरती और आकाश न मांगूं,
या ईश्वरीय प्रकाश न मांगूं,
मांगे हूं दो गज ज़मीन बस -
मैं शाही आवास न मांगूं
पापों को पनहीं,
परधनियां मोटी-सौंटी,
सिर को साफा छाता दे।

मज़हब नहीं भीख का कोई,
भीख न होती ब्राह्मण, भोई,
अमरीका, यूरोप भले दे -
होती नहीं दूध की धोई
इनके हैं हम पांसे,
तो उनकी हम गोटी,
हमें हमारा त्राता दे!
जनगण मंगल गाथा दे।

नियम युद्ध के दफ्न हो गये
पुरखे जाने कहां से गये,
कुरूक्षेत्रों में खड़े हुए दिन -
कृष्ण न जाने कहां खो गए?
स्वजन पड़ौसों में बैठे,
भर रहे चिकोटी -
शवरी और सुजाता दे!
मौला दे! दाता दे!!