भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रे मन / सोहनलाल द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
− | + | {{KKRachna | |
− | {{ | + | |रचनाकार=सोहनलाल द्विवेदी |
− | | | + | }} |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | }} | + | |
− | + | ||
प्रबल झंझावत में तू <br> | प्रबल झंझावत में तू <br> | ||
बन अचल हिमवान रे मन। <br><br> | बन अचल हिमवान रे मन। <br><br> |
19:03, 14 अप्रैल 2009 का अवतरण
प्रबल झंझावत में तू
बन अचल हिमवान रे मन।
हो बनी गम्भीर रजनी,
सूझती हो न अवनी,
ढल न अस्ताचल अतल में
बन सुवर्ण विहान रे मन।
उठ रही हो सिन्धु लहरी
हो न मिलती थाह गहरी
नील नीरधि का अकेला
बन सुभग जलयान रे मन।
कमल कलियाँ संकुचित हो,
रश्मियाँ भी बिछलती हो,
तू तुषार गुहा गहन में
बन मधुप की तान रे मन।