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"रे मन / सोहनलाल द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर

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प्रबल झंझावत में तू <br>
 
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बन अचल हिमवान रे मन। <br><br>
 
बन अचल हिमवान रे मन। <br><br>

19:03, 14 अप्रैल 2009 का अवतरण

प्रबल झंझावत में तू
बन अचल हिमवान रे मन।

हो बनी गम्भीर रजनी,
सूझती हो न अवनी,
ढल न अस्ताचल अतल में
बन सुवर्ण विहान रे मन।

उठ रही हो सिन्धु लहरी
हो न मिलती थाह गहरी
नील नीरधि का अकेला
बन सुभग जलयान रे मन।

कमल कलियाँ संकुचित हो,
रश्मियाँ भी बिछलती हो,
तू तुषार गुहा गहन में
बन मधुप की तान रे मन।