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मंच पर रोशनी
नेपथ्य में अंधेरा
सारतत्त्व
यही मेरा।
दर्शकों की भीड़ में
तालियों की गूँज में
खोया है कहीं
सपनों का सवेरा।
प्रशंसक आए
आयोजक आए
व्यवस्थापक आए
विदूषक आए
सभायें हुईं
प्रतिज्ञायें हुईं
झगड़ा बस इतना
क्या तेरा क्या मेरा।
किरदार ऐसे बने
मंच ऐसे सजे
व्यभिचार हुए
दुराचार हुए
अत्याचार हुए
बलात्कार हुए
अर्जुन को छोड़
युधिष्ठिर से मुँह मोड़
द्रौपदी बोली -
दुःशासन मेरा।
आज के धृतराष्ट्र भी
वैसे ही अन्धे
भीष्म के सामने
चलते हैं धन्धे
इन्द्रप्रस्थ बन गया
दुर्योधन का डेरा।
मंच के खेल में
सभी खलनायक मेल में
ऐसा कथानक
चाहते
आज के दर्शक
किस्से हों सनसनीखेज
अन्त लोमहर्षक।
बाज़़ार में बिक गया
साहित्य, संगीत, सवेरा
मंच पर रोशनी
नेपथ्य में अंधेरा