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मैं आ तो गया फिर उसी जगह
पर जगह के मायने
केवल मिट्टी, पत्थर और मैदान होते हैं क्या?
कहाँ है वह लाल दुम वाली चिड़िया
और बादाम की हरियाली
कहाँ है मिमियाते हुए मेमने
और अनारों वाली शामें ?
रोटियों की सुगंध
और उनके लिए उठती कुनमुनाहटें कहाँ हैं?
कहाँ गईं वे खिड़कियाँ
और अमीरा की बिख़री हुई लटें?
कहाँ ग़ुम हो गए सारे के सारे बटेर
और सफ़ेद खुरों वाले हिनहिनाते हुए घोड़े
जिनकी केवल दाईं टांग खुली छोड़ी गई थी?
कहाँ गईं वे बारातें
और उनकी लजीज़ दावतें ?
वे रस्मो-रिवाज़ और जैतून वाले भोज कहाँ चले गए?
गेहूँ की बालियों से भरे लहरदार खेत कहाँ गए
और कहाँ चली गईं फूलवाले पौधों की रोंएदार बरौनियाँ?
हम खेलते थे जहाँ
लुका-छिपी का खेल देर-देर तक
वो खेत कहाँ चले गए ?
वो सुगंध से मदमस्त झाड़ियाँ कहाँ चली गईं ?
जन्नत से चूजों पर सीधे उतर आने वाली
पतंगे कहाँ गई
जिन्हें देखते ही
बुढ़िया के मुँह से निकलने लगती थीं गालियों की झड़ी :
हमारी चित्तीदार मुर्गियाँ चुराने वालो
सब के सब तुम, छिनाल हो-
मुझे मालूम है तुम उन्हें हजम नहीं कर सकते-
फूटो यहाँ से छिनालो
तुम मेरी मुर्गियाँ कतई हजम नहीं कर पाओगे।
अंग्रेज़ी से अनुवाद : यादवेन्द्र