भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नौकरी पाने की उम्र / विजयशंकर चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजयशंकर चतुर्वेदी }}जिनकी चली जाती है नौकरी पा...)
(कोई अंतर नहीं)

18:50, 30 अप्रैल 2009 का अवतरण

जिनकी चली जाती है नौकरी पाने की उम्र

उनके आवेदन पत्र पड़े रह जाते हैं दफ्तरों में

तांत्रिक की अँगूठी भी

ग्रहों में नहीं कर पाती फेरबदल

नहीं आता बरसोंबरस कहीं से कोई जवाब

कमर से झुक जाते हैं वे

हालाँकि इतनी भी नहीं होती उमर

सब पढ़ा-लिखा होने लगता है बेकार

बढ़ी रहती हैं दाढ़ी की खूँटियाँ

कोई सड़क उन्हें नहीं ले जाती घर

वे चलते हैं सुरंगों में

और चाहते हैं कि फट जाए धरती

उनकी याद्दाश्त एक पुल है

कभी-कभार कोई साथी

नजर आता है उस पर बैठा हुआ

वे जाते हैं

और खटखटाते हैं पुराने बंद कमरे

वहाँ कोई नहीं लिपटता गले से

चायवाला बरसों से बूढ़ा हो रहा है वहीं

मगर बदल जाते हैं लड़के साल दर साल

जिनकी चली जाती है नौकरी पाने की उम्र

वे सोचते हैं नए लड़कों के बारे में

और पीले पड़ जाते हैं।