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"नौकरी पाने की उम्र / विजयशंकर चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
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18:50, 30 अप्रैल 2009 का अवतरण
जिनकी चली जाती है नौकरी पाने की उम्रउनके आवेदन पत्र पड़े रह जाते हैं दफ्तरों में
तांत्रिक की अँगूठी भी
ग्रहों में नहीं कर पाती फेरबदल
नहीं आता बरसोंबरस कहीं से कोई जवाब
कमर से झुक जाते हैं वे
हालाँकि इतनी भी नहीं होती उमर
सब पढ़ा-लिखा होने लगता है बेकार
बढ़ी रहती हैं दाढ़ी की खूँटियाँ
कोई सड़क उन्हें नहीं ले जाती घर
वे चलते हैं सुरंगों में
और चाहते हैं कि फट जाए धरती
उनकी याद्दाश्त एक पुल है
कभी-कभार कोई साथी
नजर आता है उस पर बैठा हुआ
वे जाते हैं
और खटखटाते हैं पुराने बंद कमरे
वहाँ कोई नहीं लिपटता गले से
चायवाला बरसों से बूढ़ा हो रहा है वहीं
मगर बदल जाते हैं लड़के साल दर साल
जिनकी चली जाती है नौकरी पाने की उम्र
वे सोचते हैं नए लड़कों के बारे में
और पीले पड़ जाते हैं।