"हिन्दी का ढोल / शैल चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
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खूबसूरत थी, इसलिए | खूबसूरत थी, इसलिए | ||
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:: अब तो इस अँगूठे को हटाओ | :: अब तो इस अँगूठे को हटाओ | ||
:: हम तुम में डूब जाए | :: हम तुम में डूब जाए | ||
− | :: तुम | + | :: तुम हममें डूब जाओ!" |
वह मुस्कुराकर बोली- | वह मुस्कुराकर बोली- | ||
:: शौक़ से डूबिए भाईसाहब! मुझे तो जीना है | :: शौक़ से डूबिए भाईसाहब! मुझे तो जीना है | ||
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:: आँसू नहीं पीना है | :: आँसू नहीं पीना है | ||
:: लड़को की क्या कमी है? | :: लड़को की क्या कमी है? | ||
− | :: एक ढूंढो हज़ार मिलते है | + | :: एक ढूंढो, हज़ार मिलते है |
:: तिज़ोरी में ताकत हो तो | :: तिज़ोरी में ताकत हो तो | ||
:: डॉक्टर और इंजीनियर भी उधार मिलते हैं। | :: डॉक्टर और इंजीनियर भी उधार मिलते हैं। | ||
− | :: हमारी बहन भी हिन्दी में | + | :: हमारी बहन भी हिन्दी में एम.ए. है |
:: लेकिन ऐसी ससुराल मिली है | :: लेकिन ऐसी ससुराल मिली है | ||
:: जहाँ नौकर तक अंग्रेज़ी बोलते हैं | :: जहाँ नौकर तक अंग्रेज़ी बोलते हैं | ||
:: और कुत्ते भी समझते है!" | :: और कुत्ते भी समझते है!" | ||
− | और | + | और हमारी समझ में तब आया |
जब हमारे पिताजी ने एक लड़की वाले को टटोला | जब हमारे पिताजी ने एक लड़की वाले को टटोला | ||
और वह चौंककर बोला- | और वह चौंककर बोला- | ||
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:: लड़का हिंदी में एम.ए. है। | :: लड़का हिंदी में एम.ए. है। | ||
:: तो भैया, घर में बिठाओ | :: तो भैया, घर में बिठाओ | ||
− | :: और बाप बेटा मिलकर | + | :: और बाप-बेटा मिलकर |
:: मीरा के भजन गाओ।" | :: मीरा के भजन गाओ।" | ||
एक रिश्ता और आया | एक रिश्ता और आया | ||
पंक्ति 47: | पंक्ति 47: | ||
:: "का कहा! एक लाख | :: "का कहा! एक लाख | ||
:: इ-इ-इ हिन्दी के ढोल का कौन देगा जी? | :: इ-इ-इ हिन्दी के ढोल का कौन देगा जी? | ||
− | :: ससुर, ख़ुआब | + | :: ससुर, ख़ुआब देखत हैं |
− | :: अपना काँटा के लिए गुलाब | + | :: अपना काँटा के लिए गुलाब देखत हैं |
− | : | + | : जनते है? |
:: मर जाइएगा | :: मर जाइएगा | ||
:: तबहुँ नहीं पाइएगा।" | :: तबहुँ नहीं पाइएगा।" | ||
उसके जाते ही पिताजी | उसके जाते ही पिताजी | ||
हमसे बोले- | हमसे बोले- | ||
− | :: " | + | :: "क्यों बे, हिन्दी के ढोल |
:: और कितने जूते खिलवाएगा बोल | :: और कितने जूते खिलवाएगा बोल | ||
− | :: अब तो यही सुनना | + | :: अब तो यही सुनना बाक़ी रह गया है |
:: सुन लिया न | :: सुन लिया न | ||
:: वो ढोलकी का बाप क्या कह गया है? | :: वो ढोलकी का बाप क्या कह गया है? | ||
:: लोग संस्कारों को सूली पर टाँग रहे हैं | :: लोग संस्कारों को सूली पर टाँग रहे हैं | ||
:: और बेटे के बाप से दहेज माँग रहे हैं | :: और बेटे के बाप से दहेज माँग रहे हैं | ||
− | :: अरे, ये हिन्दी का ढोल मेरी | + | :: अरे, ये हिन्दी का ढोल मेरी क़िस्मत में न होता |
:: तो जलवा दिखा देता | :: तो जलवा दिखा देता | ||
:: माँगनेवाले का घर बिकवाकर | :: माँगनेवाले का घर बिकवाकर | ||
− | :: साले को फुटपाथ पर | + | :: साले को फुटपाथ पर बिठा देता |
:: पहले ही कहा था | :: पहले ही कहा था | ||
:: हिन्दी-विन्दी के चक्कर में मत पड़ | :: हिन्दी-विन्दी के चक्कर में मत पड़ | ||
− | :: कोई ठिकाने का सब्जेक्ट लेकर एम.ए कर | + | :: कोई ठिकाने का सब्जेक्ट लेकर एम.ए. कर |
:: हमारे चपरासी तक का लड़का अफ़सर हो गया | :: हमारे चपरासी तक का लड़का अफ़सर हो गया | ||
:: सगाई में स्कूटर लाया है | :: सगाई में स्कूटर लाया है | ||
:: शादी में कार लाएगा | :: शादी में कार लाएगा | ||
− | :: और सुना है | + | :: और सुना है लड़कीवाला पूरी बारात को |
− | :: | + | :: फ़ाइव स्टार होटल में ठहरायेगा |
− | :: यहाँ | + | :: यहाँ मौक़ा भी आ गया तो |
:: ठहराने वाला | :: ठहराने वाला | ||
:: ठहरा देगा झाड़ के नीचे | :: ठहरा देगा झाड़ के नीचे | ||
:: और सायकल के नाम पर | :: और सायकल के नाम पर | ||
− | :: कुत्ते | + | :: कुत्ते छुड़वा देगा पीछे |
− | :: भागते नहीं बनेगा | + | :: भागते भी नहीं बनेगा |
:: और बेटा! | :: और बेटा! | ||
:: तुम्हारा हनीमून भी झाड़ पर मनेगा | :: तुम्हारा हनीमून भी झाड़ पर मनेगा | ||
− | :: हर बाप के अरमान | + | :: हर बाप के अरमान होते हैं |
− | :: कि बेटा पढ़ | + | :: कि बेटा पढ़ लिखकर कुछ बने |
:: तो उसे कैश करें | :: तो उसे कैश करें | ||
− | :: और | + | :: और बुढ़ापे में ऐश करें |
− | :: हमने भी बेटी के हाथ पीले किए | + | :: हमने भी बेटी के हाथ पीले किए हैं |
:: अंटी में जो था सब गँवा दिया | :: अंटी में जो था सब गँवा दिया | ||
:: और जब हमारे कमाने का वक्त आया | :: और जब हमारे कमाने का वक्त आया | ||
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हमने कहा- | हमने कहा- | ||
− | :: " पिताजी! | + | :: "पिताजी! |
:: दहेज़ लेना पाप है।" | :: दहेज़ लेना पाप है।" | ||
वो बोले- | वो बोले- | ||
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:: हम तेरे बाप हैं | :: हम तेरे बाप हैं | ||
:: कि तू हमारा बाप है | :: कि तू हमारा बाप है | ||
− | :: खबरदार जो दहेज को पाप कहा! | + | :: खबरदार, जो दहेज को पाप कहा! |
:: और आज के बाद मुझे अपना बाप कहा! | :: और आज के बाद मुझे अपना बाप कहा! | ||
:: अबे, हिन्दी के ढोल | :: अबे, हिन्दी के ढोल | ||
:: जो बेटे का बाप | :: जो बेटे का बाप | ||
− | :: बिना | + | :: बिना दहेज़ खाए मरता है |
:: उसे भगवान भी माफ़ नहीं करता है। | :: उसे भगवान भी माफ़ नहीं करता है। | ||
:: अब खड़े-खड़े मुँह क्या देख रहा है | :: अब खड़े-खड़े मुँह क्या देख रहा है | ||
:: जा हाथ में कटोरा थामकर | :: जा हाथ में कटोरा थामकर | ||
− | :: मीरा के भजन गा। | + | :: मीरा के भजन गा।" |
और हमारे जी में आया | और हमारे जी में आया | ||
हाथ में तँबूरा लेकर | हाथ में तँबूरा लेकर | ||
पंक्ति 113: | पंक्ति 113: | ||
:: फिरता हूँ मैं मारा-मारा | :: फिरता हूँ मैं मारा-मारा | ||
:: सुबह-दोपहर-शाम | :: सुबह-दोपहर-शाम | ||
− | :: पढ़लिख | + | :: पढ़लिख कर हिन्दी मैं हारा |
:: दुनिया कहती है आवारा | :: दुनिया कहती है आवारा | ||
:: जी करता है थाम उस्तरा | :: जी करता है थाम उस्तरा | ||
:: बन जाऊँ हज्जाम | :: बन जाऊँ हज्जाम | ||
:: हिन्दी आई न मेरे काम।" | :: हिन्दी आई न मेरे काम।" |
07:00, 4 मई 2009 के समय का अवतरण
जिन दिनों हम पढ़ते थे
एक लड़की हमारे कॉलेज में थी
खूबसूरत थी, इसलिए
सबकी नॉलेज में थी
मराठी में मुस्कुराती थी
उर्दू में शर्माती थी
हिन्दी में गाती थी
और दोस्ती के नाम पर
अंग्रेज़ी में अँगूठा दिखाती थी
एम.ए. करने के बाद
हमने उससे कहा-
तुम भी एम.ए.
हम भी एम.ए.
अब तो इस अँगूठे को हटाओ
हम तुम में डूब जाए
तुम हममें डूब जाओ!"
वह मुस्कुराकर बोली-
शौक़ से डूबिए भाईसाहब! मुझे तो जीना है
हिन्दीवाले की बीबी बनकर
आँसू नहीं पीना है
लड़को की क्या कमी है?
एक ढूंढो, हज़ार मिलते है
तिज़ोरी में ताकत हो तो
डॉक्टर और इंजीनियर भी उधार मिलते हैं।
हमारी बहन भी हिन्दी में एम.ए. है
लेकिन ऐसी ससुराल मिली है
जहाँ नौकर तक अंग्रेज़ी बोलते हैं
और कुत्ते भी समझते है!"
और हमारी समझ में तब आया
जब हमारे पिताजी ने एक लड़की वाले को टटोला
और वह चौंककर बोला-
"क्या कहा?
लड़का हिंदी में एम.ए. है।
तो भैया, घर में बिठाओ
और बाप-बेटा मिलकर
मीरा के भजन गाओ।"
एक रिश्ता और आया
पर जैसे ही पिताजी ने
हमारा रेट खोला
लड़की का बाप उछलकर बोला-
"का कहा! एक लाख
इ-इ-इ हिन्दी के ढोल का कौन देगा जी?
ससुर, ख़ुआब देखत हैं
अपना काँटा के लिए गुलाब देखत हैं
जनते है?
मर जाइएगा
तबहुँ नहीं पाइएगा।"
उसके जाते ही पिताजी
हमसे बोले-
"क्यों बे, हिन्दी के ढोल
और कितने जूते खिलवाएगा बोल
अब तो यही सुनना बाक़ी रह गया है
सुन लिया न
वो ढोलकी का बाप क्या कह गया है?
लोग संस्कारों को सूली पर टाँग रहे हैं
और बेटे के बाप से दहेज माँग रहे हैं
अरे, ये हिन्दी का ढोल मेरी क़िस्मत में न होता
तो जलवा दिखा देता
माँगनेवाले का घर बिकवाकर
साले को फुटपाथ पर बिठा देता
पहले ही कहा था
हिन्दी-विन्दी के चक्कर में मत पड़
कोई ठिकाने का सब्जेक्ट लेकर एम.ए. कर
हमारे चपरासी तक का लड़का अफ़सर हो गया
सगाई में स्कूटर लाया है
शादी में कार लाएगा
और सुना है लड़कीवाला पूरी बारात को
फ़ाइव स्टार होटल में ठहरायेगा
यहाँ मौक़ा भी आ गया तो
ठहराने वाला
ठहरा देगा झाड़ के नीचे
और सायकल के नाम पर
कुत्ते छुड़वा देगा पीछे
भागते भी नहीं बनेगा
और बेटा!
तुम्हारा हनीमून भी झाड़ पर मनेगा
हर बाप के अरमान होते हैं
कि बेटा पढ़ लिखकर कुछ बने
तो उसे कैश करें
और बुढ़ापे में ऐश करें
हमने भी बेटी के हाथ पीले किए हैं
अंटी में जो था सब गँवा दिया
और जब हमारे कमाने का वक्त आया
तो इस हिन्दी के ढोल ने मरवा दिया।"
हमने कहा-
"पिताजी!
दहेज़ लेना पाप है।"
वो बोले-
"चोप्प!
हम तेरे बाप हैं
कि तू हमारा बाप है
खबरदार, जो दहेज को पाप कहा!
और आज के बाद मुझे अपना बाप कहा!
अबे, हिन्दी के ढोल
जो बेटे का बाप
बिना दहेज़ खाए मरता है
उसे भगवान भी माफ़ नहीं करता है।
अब खड़े-खड़े मुँह क्या देख रहा है
जा हाथ में कटोरा थामकर
मीरा के भजन गा।"
और हमारे जी में आया
हाथ में तँबूरा लेकर
घर से निकल पड़ें
और गाते फिरें-
"हिन्दी आई न मेरे काम
फिरता हूँ मैं मारा-मारा
सुबह-दोपहर-शाम
पढ़लिख कर हिन्दी मैं हारा
दुनिया कहती है आवारा
जी करता है थाम उस्तरा
बन जाऊँ हज्जाम
हिन्दी आई न मेरे काम।"