"तलाश नये विषय की / शैल चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
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दर बरस निकाल लिए | दर बरस निकाल लिए | ||
और बाल बच्चे पाल लिए | और बाल बच्चे पाल लिए | ||
− | किसी नेता की | + | किसी नेता की दाढ़ी से |
कविता की गाड़ी खींचते रहे | कविता की गाड़ी खींचते रहे | ||
किसी के मरे हुए पानी से | किसी के मरे हुए पानी से | ||
शब्दों की फुलवारी सींचते रहे | शब्दों की फुलवारी सींचते रहे | ||
किसी के चरित्र पर चोट करते रहे | किसी के चरित्र पर चोट करते रहे | ||
− | धोती | + | धोती को फाड़कर लंगोट करते रहे |
कब तक फाड़ते! | कब तक फाड़ते! | ||
घिसे हुए नेता की आरती | घिसे हुए नेता की आरती | ||
− | कब | + | कब तक उतारते? |
अब राजनीति में क्या रक्खा है | अब राजनीति में क्या रक्खा है | ||
क्योंकि हर विरोधी | क्योंकि हर विरोधी | ||
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कि आने वाली पीढियाँ | कि आने वाली पीढियाँ | ||
पता लगाते-लगाते खत्म हो जएंगी | पता लगाते-लगाते खत्म हो जएंगी | ||
− | कि मूल गीत कौन सा है।" | + | कि मूल गीत कौन-सा है।" |
वह बोला-"फ़िल्मी गीतों की पैरोडी कैसी रहेगी?" | वह बोला-"फ़िल्मी गीतों की पैरोडी कैसी रहेगी?" | ||
पंक्ति 63: | पंक्ति 63: | ||
हमने कहा-"समाचार! | हमने कहा-"समाचार! | ||
कहाँ हड़ताल हुई, कहाँ दंगा | कहाँ हड़ताल हुई, कहाँ दंगा | ||
− | कौन | + | कौन शहीद हुआ |
कौन नंगा | कौन नंगा | ||
यही पता लगाते-लगाते | यही पता लगाते-लगाते | ||
पंक्ति 74: | पंक्ति 74: | ||
हमने कहा-"अगर किसी डाकू ने | हमने कहा-"अगर किसी डाकू ने | ||
मार दिया चाकू | मार दिया चाकू | ||
− | तो बच्चे अनाथ हो जाएंगे।" | + | तो बच्चे अनाथ हो जाएंगे। |
+ | भूख से परेशान होकर | ||
+ | डाकुओं के साथ हो जाएंगे।" | ||
वह बोला-"चोर।" | वह बोला-"चोर।" | ||
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क्योंकि चोर इस ज़माने में | क्योंकि चोर इस ज़माने में | ||
सम्मानित शब्द है | सम्मानित शब्द है | ||
− | गाली नहीं | + | गाली नहीं है।" |
वह बोला-"आसाम" | वह बोला-"आसाम" | ||
पंक्ति 101: | पंक्ति 103: | ||
हम कवि हैं | हम कवि हैं | ||
अपनी छवि नहीं बिगाड़ेंगे | अपनी छवि नहीं बिगाड़ेंगे | ||
− | कूड़े को | + | कूड़े को क़लम से नहीं बुहारेंगे। |
वह बोला-"भ्रष्टाचार!" | वह बोला-"भ्रष्टाचार!" | ||
हमने कहा-"एक ऐसा झाड़ | हमने कहा-"एक ऐसा झाड़ | ||
− | + | जिसकी डालियाँ नीचे | |
− | और | + | और जड़ उपर है |
− | + | उसे किसका डर है?" | |
− | + | वह बोला-"चुटकुले कवि सम्मेलनों की नाक हो गए हैं।" | |
− | वह बोला-" | + | |
हमने कहा-"वे भी आजकल | हमने कहा-"वे भी आजकल | ||
बहुत चालाक हो गए हैं।" | बहुत चालाक हो गए हैं।" | ||
− | एक लावारिस | + | एक लावारिस चुटकुले को हमने |
पाल पोस कर बड़ा किया | पाल पोस कर बड़ा किया | ||
मगर ऐन वक्त पर ऐंठ गया | मगर ऐन वक्त पर ऐंठ गया | ||
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दूसरे की गोद में बैठ गया। | दूसरे की गोद में बैठ गया। | ||
हमने पूछा तो बोला | हमने पूछा तो बोला | ||
− | + | 'माफ करना अंकल जी | |
− | यहाँ मेरे कई भाई बन्द | + | यहाँ मेरे कई भाई बन्द हैं |
− | आपके यहाँ अकेला फँस गया | + | आपके यहाँ अकेला फँस गया था। |
+ | तालियों तक के लिए तरस गया था।' | ||
और चुटकुला बिना ताली के | और चुटकुला बिना ताली के | ||
ठीक उसी तरह है | ठीक उसी तरह है |
08:50, 4 मई 2009 के समय का अवतरण
मत पूछिए कि आजकल क्या कर रहे हैं?
बस, पुरानी कविताओं में
नया रंग भर रहे हैं
लेकिन कितना ही भर लो
सब बेकार है
आज का श्रोता बड़ा समझदार है
फौरन ताड़ लेता है
अच्छे-अच्छे रंग बाज़ों का
हुलिया बिगाड़ देता है।
भगवान भला करें उन नेताओं का
जिनके भरोसे हमने
दर बरस निकाल लिए
और बाल बच्चे पाल लिए
किसी नेता की दाढ़ी से
कविता की गाड़ी खींचते रहे
किसी के मरे हुए पानी से
शब्दों की फुलवारी सींचते रहे
किसी के चरित्र पर चोट करते रहे
धोती को फाड़कर लंगोट करते रहे
कब तक फाड़ते!
घिसे हुए नेता की आरती
कब तक उतारते?
अब राजनीति में क्या रक्खा है
क्योंकि हर विरोधी
हक्का बक्का है।
उधर मैदान खाली है
और इधर मंच पर
कविता है, न ताली है।
चली हुई कविता को
कितना और चलाए
समझ में नहीं आता
नया विषय कहाँ से लाए?
एक मित्र ने सलाह दी-
"गीतों की पेरोडी सुनाओ।"
हमने जवाब दिया-
"पेरोडी पापुलर गीतों की बनाई जाती है
और हमें बताते हुए शर्म आती है
कि पिछले तीस बरसों में
एक ही गीत पापुलर हुआ
(कारवां ग़ुज़र गया ग़ुबार देखते रहे)
और उसकी इतनी पैरोडियाँ बन चुकी हैं
कि आने वाली पीढियाँ
पता लगाते-लगाते खत्म हो जएंगी
कि मूल गीत कौन-सा है।"
वह बोला-"फ़िल्मी गीतों की पैरोडी कैसी रहेगी?"
हमने कहा-"आजकल के फ़िल्मी गीत भी क्या हैं
(दे दे प्यार दे, प्यार दे, प्यार दे दे दे दे प्यार दे)
ऐसे गीत की पैरोडी ऐसी लगेगी
जैसे कोई कैबरे डाँसर
नाचते-नाचते कपड़े उतार दे।"
वह बोला-"न्यूज़ पेपर पढ़ो
देश में हज़ारो दुर्घटनाए हो रही है
उन पर लिखो।"
हमने कहा-"समाचार!
कहाँ हड़ताल हुई, कहाँ दंगा
कौन शहीद हुआ
कौन नंगा
यही पता लगाते-लगाते
सुबह से शाम हो जाती है
और समाचार पुराना पड़ते ही
कविता बेनाम हो जाती है।"
वह बोला-"हमारे देश की
सदाबहार समस्या है-डाकू।"
हमने कहा-"अगर किसी डाकू ने
मार दिया चाकू
तो बच्चे अनाथ हो जाएंगे।
भूख से परेशान होकर
डाकुओं के साथ हो जाएंगे।"
वह बोला-"चोर।"
हमनें कहा-"चोरों को छेड़ना भी
ख़तरे से खाली नहीं है
क्योंकि चोर इस ज़माने में
सम्मानित शब्द है
गाली नहीं है।"
वह बोला-"आसाम"
हमने कहा-"सलाह तो नेक है
लेकिन लिखने वाले सैकड़ो हैं
और विषय एक है।
पता ही नहीं चलता
कि कौन सी कविता किसकी है!
नहीं भैया
आसाम बहुत रिस्की है।
वह बोला-"ख़ालिस्तान!"
हमने कहा-"कविता का नहीं
कृपाण का मामला है
खत्म हो जाए इसी में भला है।"
वह बोला-"पुलीस"
हमने कहा-"पुलीस का सम्बन्ध चोरों से है
हम कवि हैं
अपनी छवि नहीं बिगाड़ेंगे
कूड़े को क़लम से नहीं बुहारेंगे।
वह बोला-"भ्रष्टाचार!"
हमने कहा-"एक ऐसा झाड़
जिसकी डालियाँ नीचे
और जड़ उपर है
उसे किसका डर है?"
वह बोला-"चुटकुले कवि सम्मेलनों की नाक हो गए हैं।"
हमने कहा-"वे भी आजकल
बहुत चालाक हो गए हैं।"
एक लावारिस चुटकुले को हमने
पाल पोस कर बड़ा किया
मगर ऐन वक्त पर ऐंठ गया
हमें अँगूठा दिखा कर
दूसरे की गोद में बैठ गया।
हमने पूछा तो बोला
'माफ करना अंकल जी
यहाँ मेरे कई भाई बन्द हैं
आपके यहाँ अकेला फँस गया था।
तालियों तक के लिए तरस गया था।'
और चुटकुला बिना ताली के
ठीक उसी तरह है
जैसे जीजा बिना साली के
और गुंड़ा बिना गाली के।"
वह बोला-"फिर तो एक ही विषय बचा है
बीबी!"
हमने कहा-"बीबी का मज़ाक उड़ाएंगे
तो बच्चो के संस्कार बिगड़ जाएंगे।"
वह बोला-"संस्कार की चिंता करोगे
तो धन्धा कैसे करोगे
ऊपर उठने की कोशिश की
तो नीचे गिरोगे
जैसे भी बने
लोगों को हँसाओ
दाल रोटी खाओ
प्रभु के गुण गाओ।"