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"जीने की कला / नरेश चंद्रकर" के अवतरणों में अंतर
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देखने को
इस तरह मानते रहें जैसे
देखना कोई पाप हो
बचते रहें आसपास से
कि कोई सचमुच में न दिख जाए
आँखों से झगड़ते-झगड़ते
आख़िर आपकी आत्मा कूद पड़ेगी एक इन
हरे जल की सूनी बावड़ी में
तब फिर आप
पेट बज़ाकर भीख मांगते बच्चों को देखकर
आराम से आईसक्रीम खा सकते हो!
