भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बेटी की कविता-4 / नरेश चंद्रकर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश चंद्रकर |संग्रह=बातचीत की उड़ती धूल में / न...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
19:23, 5 मई 2009 के समय का अवतरण
"मेरे पैर सफ़र में हैं!"
बहुत हुलसते हुए कहती है वह
"इनकी दो उंगलियाँ
जा रही हैं सफ़र पर"
"पहली दूसरी को छोड़कर
पुनः लौट लेगी"
"सच है न पापा!"