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"ख़लिश / मुनीर नियाज़ी" के अवतरणों में अंतर

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22:34, 7 मई 2009 के समय का अवतरण

वो ख़ूबसूरत लड़कियाँ
दश्त-ए-वफ़ा की हिरनियाँ
शहर-ए-शब-ए-महताब की
बेचैन जादूगरनियाँ

जो बादलों में खो गई
नज़रों से ओझल हो गई
अब सर्द काली रात को
आँखों में गहरा ग़म लिये
अश्कों की बहती नहर में
गुल्नार चेहरे नम किये

हस्ती की सरहद से परे
ख़्वाबों की सन्गीं ओट से
कहती हैं मुझ को बेवफ़ा
हम से बिछड़कर क्या तुझे
सुख का ख़ज़ाना मिल गया