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"कुछ बात न थी / रवीन्द्र दास" के अवतरणों में अंतर
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17:10, 11 मई 2009 के समय का अवतरण
कुछ बात न थी,
कुछ हुआ नहीं ।
फिर भी थे खफा, मर्ज़ी उनकी
वो कहने लगे-
अब और नहीं।
होगा न गुज़र तुम मर्दों से
हम अपनी फ़िकर ख़ुद कर लेंगे
हम स्त्री, स्त्रीवादी हैं
ख़ुद जी लेंगे , ख़ुद मर लेंगे।
हमने पूछा-
क्या मिलकर हम...
बकवास न करना आगे से
क्यों साथ तुम्हारा हम लेंगे
हम हिस्सा लेंगे संसद में...
फिर ?
अपना रास्ता आगे देखो
है बात पुरानी कुछ दिन की
मैं अपना रास्ता देख रहा
और सोच रहा
क्या क्या किस्सा है जुदा-जुदा
मैं कौन हूँ किसके हिस्से का ?
कुछ बात न थी ।