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15:45, 12 मई 2009 के समय का अवतरण

जितनी देर मैं हाँ करता रहा
उतने क्षण जीवन था

ऐसा नहीं कि हाँ से आता जीवन
उजला ही था
कुछ ऎसी भी रातें थीं
जिनमें चांद अनुपस्थित था

मैंने जब भी किसी ना को हाँ कहा
एक छोटा तारा झलकता देखा
खिड़की से दूर
एक पहाड़ के सिर पर सिर उठाता!