भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चार पंक्तियाँ / प्रभाकर माचवे" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
निर्जन की जिज्ञासा है निर्झर की तुतली बोली में <br>
 
निर्जन की जिज्ञासा है निर्झर की तुतली बोली में <br>
 
विटपों के हैं प्रश्नचिन्ह विहगों की वन्य ठिठोली में <br>
 
विटपों के हैं प्रश्नचिन्ह विहगों की वन्य ठिठोली में <br>
इंगित हैं' कुछ और पूछ लूँ' इन्द्रचाप की रोली में <br>
+
इंगित हैं 'कुछ और पूछ लूँ' इन्द्रचाप की रोली में <br>
 
संशय के दो कण लाया हूँ आज ज्ञान की झोली में । <br>
 
संशय के दो कण लाया हूँ आज ज्ञान की झोली में । <br>

19:00, 31 अगस्त 2006 का अवतरण

कवि: प्रभाकर माचवे

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~

निर्जन की जिज्ञासा है निर्झर की तुतली बोली में
विटपों के हैं प्रश्नचिन्ह विहगों की वन्य ठिठोली में
इंगित हैं 'कुछ और पूछ लूँ' इन्द्रचाप की रोली में
संशय के दो कण लाया हूँ आज ज्ञान की झोली में ।