"आमाल से मैं अपने बहुत बेख़बर चला / सौदा" के अवतरणों में अंतर
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आया था आह किसलिए और क्या मैं कर चला | आया था आह किसलिए और क्या मैं कर चला | ||
− | है फ़िक्रे- | + | है फ़िक्रे-वस्ल<ref> मिलन की चिंता</ref> सुब्ह' तो अंदोहे-हिज्र<ref>वियोग का दुख</ref> शाम |
− | इस रोज़ो- | + | इस रोज़ो-शब<ref>दिन-रात</ref> के धंधे में अब मैं तो मर चला |
निकले पड़े है जामा से कुछ इन दिनों रक़ीब | निकले पड़े है जामा से कुछ इन दिनों रक़ीब | ||
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चलने का मुझको घर से तिरे कुछ नहीं है ग़म | चलने का मुझको घर से तिरे कुछ नहीं है ग़म | ||
− | औरों से गो मैं इक-दो क़दम | + | औरों से गो मैं इक-दो क़दम पेशतर<ref>आगे </ref> चला |
क्या इस चमन में आन के ले जायेगा कोई | क्या इस चमन में आन के ले जायेगा कोई | ||
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भेजा है वो पयाम मैं उस शोख़ को कि आज | भेजा है वो पयाम मैं उस शोख़ को कि आज | ||
− | कर ख़िज़्रे- | + | कर ख़िज़्रे-राह<ref>मार्गदर्शक</ref> मर्ग<ref>मृत्यु</ref> को पैग़ाम्बर<ref>सन्देशवाहक |
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तूफ़ाँ भरे था पानी जिन आँखों के सामने | तूफ़ाँ भरे था पानी जिन आँखों के सामने | ||
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18:05, 15 मई 2009 का अवतरण
आमाल<ref>कर्मों</ref> से मैं अपने बहुत बेख़बर चला
आया था आह किसलिए और क्या मैं कर चला
है फ़िक्रे-वस्ल<ref> मिलन की चिंता</ref> सुब्ह' तो अंदोहे-हिज्र<ref>वियोग का दुख</ref> शाम
इस रोज़ो-शब<ref>दिन-रात</ref> के धंधे में अब मैं तो मर चला
निकले पड़े है जामा से कुछ इन दिनों रक़ीब
थोड़े से दम-दिलासे में कितना उफर चला
चलने का मुझको घर से तिरे कुछ नहीं है ग़म
औरों से गो मैं इक-दो क़दम पेशतर<ref>आगे </ref> चला
क्या इस चमन में आन के ले जायेगा कोई
दामन को मेरे सामने गुल झाड़कर चला
भेजा है वो पयाम मैं उस शोख़ को कि आज
कर ख़िज़्रे-राह<ref>मार्गदर्शक</ref> मर्ग<ref>मृत्यु</ref> को पैग़ाम्बर<ref>सन्देशवाहक
</ref> चला
तूफ़ाँ भरे था पानी जिन आँखों के सामने
आज अब्र<ref>बादल </ref> उनके आगे ज़मीं करके तर चला
'सौदा' रखे था यार से यक-मू<ref>ज़रा-सा भी</ref> नहीं ग़रज़
ऊधर<ref>उधर</ref> खुली जो ज़ुल्फ़, इधर दिल बिखर चला
<KKMeaning>