"गुज़रते हुए / विजय गौड़" के अवतरणों में अंतर
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22:29, 17 मई 2009 के समय का अवतरण
घाटियों से उठते धुएँ
और पंखा झलते पहाड़ों से
लय बैठाते,
वाहन में सवार
खिड़की से गर्दन बाहर निकाल
उलटते रहे खट्टापन
बुग्यालों पर पिघल चुकी
बर्फ़ के बाद
हरहराती-फिसलन से
बेदख़ल कर दी गयी
भेड़-बकरियों की मिमियाहट
को खोजते हुए बढ़ते रहे
जली हुई चट्टानों की ओर
खो चुके रास्तों को खोजना
जोख़िम से भरा ही था
रूपकुंड की ऊँचाई से भी ऊपर
ज्यूरागली के डरावने पन के पार
शिला-समुद्र पहुँचना
आसान नहीं इतना।
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
पहाड़ों की खोह में है रूपकुंड
रूपकुंड में नहीं सँवारा जा सकता है रूप
बर्फानी हवाएँ
वैसे ही फाड़ देंगी चेहरा
यदि मौसम के गीलेपन को
निचोड़ दिया चट्टानों ने,
खाल पर दरारें तो
गीलेपन के खौफ़ से भी न डरेंगीं,
एक उम्र तक पहुँचने से पहले
यूँ ही नहीं
सिकुड़न बना लेती है घर
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
नाम मात्र से आकर्षित होकर
रूपकुंड का रास्ता पकड़ना
ख़ुद को जोख़िम में डालना होगा
तह दर तह बिछी हुई बर्फ़ के नीचे
दबे हुई लाशें
अनंतकाल से दोहरा रही हैं,
कटी हुई चट्टानों में
रुकने का
जोख़िम न उठाना कभी
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
सदियों से उगती रही है
बेदनी बुगयाल में बुग्गी घास,
चरती रही हैं भेड़ें
आली और दयारा बुग्याल में भी
रंग बदलती घास ही
चिपक जाती है बदन पर भेड़ों के
जो देती है हमें गर्माहट
और मिटाती है
भेड़ चरवाहों की थकावट
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
अतीश, पंजा, मासी-जटा
अनगिनत
जड़ी-बूटियों के घर हैं
बुग्याल,
कीड़ा-झाड़
हाल ही में खोजा गया
नया खजाना है
जो पहाड़ों के लुटेरों की
भर रहा है जेब
!!!!!!!!!!!!!!!!!!
बुग्याल के बाद भी
कितनी ही चढ़ाई और उतराई होंगी
रूपकुंड तक पहुँचने में
कितने ही दिन
रपटीले पहाड़ों पर
ढूंढ कर
कोई समतल कहा जा सकने वाला कोना
करेगें विश्राम
पुकारेगें एक दूसरे का नाम,
आवाज़ों के सौदागर
नहीं लगा पाएंगें शुल्क,
निशुल्क ही
कितने ही दिनों तक
सुन सकते हैं
पत्थरों के नीचे से
बहते पानी की आवाज़
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
बुग्यालों पर ख़रीददार होंगे,
क्या कह रहें हैं जनाब
बिकने के लिए भी तो
कुछ नहीं है बुग्यालों में
समय विशेष पर उगने वाली
जड़ियाँ तो
किसी एक टूटी हुई गोठ पर
टांग दिये गये
राजकीय चिकित्सालय से
किसी भी तरह की
उम्मीद न होने का सहारा भर हैं
फिर ऐसा क्यों हो रहा है हल्ला,
रोपवे खिंच जाएगा वहाँ
सड़क पहुँच जाएगी
गाड़ियों के काफिले
पहुँचने से इतनी पहले
बेदख़ल कर दिए गए जानवर
फिर किस लिए ?
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
रूपकुंड के शीश पर
चमकती है ज्यूरागली
पाद में फैले हैं बुग्याल;
आली, बेदनी, कुर्मातोली, गिंगातोली
बाहें कटावदार चट्टानों में
दुबक कर बैठे
ग्लेशियरों में धँस गई हैं
चेहरे को भी छुपा लिया है बर्फ़ ने
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
बर्फ़ में मुँह छुपाये
रुपकुंड के चेहरे को
ज़रा संभल कर देखना
मौसम उसकी प्रेमिका है,
कोहरे में ढक देंगें बादल
ओलावृष्टि से
क्षत-विक्षत हो जाएगें शरीर
कोई रपटीला ग्लेशियर भी
धकेल सकता है
हज़ारों फ़ुट गहरी खाई में
कार्बन डेटिंग के अलावा
और कोई आकर्षण
नहीं रहेगा मानव शरीर का
बर्फ़ के नीचे दुबका कीड़ा-झाड़
ज्यादा अहमियत रखता है
मुनाफ़ाख़ोरों के लिए।
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
हाँ जी की नौकरी
न जी का घर,
बड़बड़ाते और आशंकित ख़तरे से डरे
बढ़ते रहे
नरेन्द्र सिंह दानू और देवीदत्त कुनियाल
बगुवावासा में ही
छोड़ दो सामान, सर
बिना पिट्ठु के ही
रूपकुंड तक पहुँचना आसान नहीं है
ज्यूरागली तो मौत का घर है, सर
क्षरियानाग पर पस्त होने के बाद भी
नहीं रुके
नहीं रुकेगें शिला-समुद्र तक,
हमने ढेरों पहाड़ किए हैं पार
ज्यूरागली का रास्ता नहीं है आसान
पहाड़ों का पहाड़ है ज्यूरागली,
नीचे मुँह खोले बैठा है रुपकुंड
हमारे पिट्ठुओं का वजन
गीले हो चुके सामानों से बढ़ गया है, सर
पर नहीं हटेगें हम पीछे
चलेगें आपके साथ-साथ
बाल-बच्चेदार तो आप भी हैं न सर
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
पहाड़ ताक़त से नहीं
हिम्मत से होते हैं पार
दृढ़ इच्छाशक्ति ही
कंधों पर लदे
पिट्ठुओं के भार को हवा कर सकती है,
हवा की अनुपस्थिति में तो
उठते ही नहीं पैर
फेफड़ों की धौंकनी तो
ग़ुम ही कर देती है आवाज़
रपटीले पहाड़ों पर
रस्सी क्रे सहारे चढ़ना-उतरना
टंगी हुई हिम्मत को
अपने भीतर इकट्ठा करना है बस।
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
बर्फ़ीली ढलान पर
नहीं होता कोई पद-चिन्ह,
किसी न किसी को तो
उठाना ही पड़ेगा जोखिम
आगे बढ़ने का
काटने ही होगें फुट-हॉल
पीछे आने वालों के लिए
कमर में बंधी रस्सी के सहारे
आगे बढ़ते हुए
फुट-हॉल काटता व्यक्ति
रस्सी पर चलने का
करतब दिखाता
नट नज़र आता है।
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
धीरे-धीरे चलना, सर
तेज़ चलकर रुक जाने में
कोई बुद्धिमानी नहीं है, सर
ऐसे तो एक कैंची भी
नहीं कर पाएगें पार
खड़ी चढ़ाई पर चढ़ना तो
और भी मुश्किल हो जाएगा
धीरे-धीरे चलना, सर
ऊँचाईयों को ताकते हुए तो
दम ही टूट जायेगा,
अपने से मात्र दो फ़ुट आगे ही
निगाह रखें, सर
रुक-रुक कर नहीं
ऐसे एक-एक क़दम चलें सर
सिर्फ क़दमों पर निगाह रखें, सर
सिर्फ़ अपने क़दमों की
लय बैठायें, सर
ऊँचाई दर ऊँचाई अपने आप
पार हो जाएगीं
देखना ही है तो
नीचे छूट गए
अपने साथी को देखें, सर
कहीं उसे आपकी मदद की ज़रूरत तो नहीं
बेशक थकान कितनी ही भर चुकी हो
बेशक मुश्किल हो रहा हो पाँव उठाना,
धीरे-धीरे चलते रहें, सर
लय बैठाने के लिए अभ्यास ज़रूरी है,
क़दम गिन-गिन कर शुरु करें, सर
रुकना ही है तो
गिनती पूरी होने पर ही
पल भर को
खड़े-खड़े ही रुकें, सर
चढ़ाई पर तो
बदन आराम मांगता ही है
ठहरिये मत, सर
वैसे भी यूँही कहीं पर ठहर जाना तो
ख़तरनाक हो ही सकता है, सर
धीरे-धीरे चलें, सर
सिर्फ़ चलते रहें
एक ही लय में बिना थके
पीठ का बोझ तो वैसे ही हवा हो जाएगा
सिर्फ़ कमर को थोड़ा झुका लें, सर
सिर नही ।
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
ढाल पर उतरते हुए तो
और भी सचेत रहें, सर
घुटनों पर जोर पड़ता है;
ध्यान हटा नहीं कि
रिपटते चले जाएंगें
बस वैसे ही चलें, एक-एक क़दम
ध्यान रखें सर
पिट्ठू, लाठी या कैमरा
कुछ भी फँस सकता है चट्टान में
एक बार डोल गए तो
मैं भी कुछ नहीं कर पाऊंगा, सर
वैसे आप निष्फिकर रहें
मैं आपके साथ हूँ
आगे निकल चुके साथियों को,
यदि हम ऐसे ही चलते रहे,
जल्द ही पकड़ लेगें
वे दौड़-दौड़ कर निकले हैं
लम्बा विश्राम
जो उनकी ज़रूरत हो जाएगा
उन्हें वैसे ही थका देगा, सर
उनके पास पहुँच कर भी
हम ज़्यादा नहीं रुकेगें
बढ़ते ही रहेगें, सर
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
तम्बाकू न खाओ, सर
बीड़ी भी ठीक नहीं
चढ़ाई में वैसे ही
फूल-फूल जाती है साँस
हमारा क्या
हमारा तो आना जाना ठहरा
आपका तो कभी-कभी आना ठहरा, सर।
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
तुम्हारे सिर पर पसीना होगा
अभी चढ़ाई चढ़के आए हो,
टोपी उतारना ठीक नहीं
हमारी तरह साफा बांध लो सर
वरना हवा पकड़ लेगी ‘सर’।
शब्दार्थ :
बुग्यालों= ऊँचे पहाड़ो पर घास के मैदान
रुपकुंड, ज्यूरागली, शिला-समुद्र= जगहों के नाम
अतीश, पंजा, मासी-जटा= जड़ी-बूटियां
कीड़ा-झाड़= विशेष प्रकार की जड़ी। इसमें कीड़े के पेट से ही पौधा बाहर निकलता है। यानी जीव और वनस्पति की एकमय प्रमेय का साक्ष्य भी। इसका तिब्बती नाम है- यारक्षागंगू और अंग्रेजी नाम है- ब्वतकेमच