भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"औरत के बिना जीवन / शुभा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शुभा |संग्रह=}} <Poem> औरत दुनिया से डरती है और दुनिय...)
 
(कोई अंतर नहीं)

04:41, 31 मई 2009 के समय का अवतरण

औरत दुनिया से डरती है
और दुनियादार की तरह जीवन बिताती है
वह घर में और बाहर
मालिक की चाकरी करती है

वह रोती है
उलाहने देती है
कोसती है
पिटती है
और मर जाती है

बच्चे आवारा हो जाते हैं
बूढ़े असहाय
और मर्द अनाथ हो जाते हैं
वे अपने घर में चोर की तरह रहते हैं
और दुखपूर्वक अपनी थाली ख़ुद मांजते हैं