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04:43, 31 मई 2009 के समय का अवतरण
हम औरतें चिताओं को आग नहीं देतीं
क़ब्रों पर मिट्टी नहीं देतीं
हम औरतें मरे हुओं को भी
बहुत समय जीवित देखती हैं
सच तो ये है हम मौत को
लगभग झूठ मानती हैं
और बिछुड़ने का दुख हम
ख़ूब समझती हैं
और बिछुड़े हुओं को हम
खूब याद रखती हैं
वे लगभग सशरीर हमारी
दुनियाओं में चलते-फिरते हैं
हम जन्म देती हैं और इसको
कोई इतना बड़ा काम नहीं मानतीं
कि हमारी पूजा की जाए
ज़ाहिर है जीवन को लेकर हम
काफ़ी व्यस्त रहती हैं
और हमारा रोना-गाना
बस चलता ही रहता है
हम न तो मोक्ष की इच्छा कर पाती हैं
न बैरागी हो पाती हैं
हम नरक का द्वार कही जाती हैं
सारे ऋषि-मुनि, पंडित-ज्ञानी
साधु और संत नरक से डरते हैं
और हम नरक में जन्म देती हैं
इस तरह यह जीवन चलता है