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"मूर्तिकार-2 / प्रेमचन्द गांधी" के अवतरणों में अंतर
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अभी तो वह बच्चे की तरह
चुहल कर रहा है ईश्वर के साथ
उसके पैरों में है ईश्वर
हाथों में छैनी हथौड़ा लिये
वह गढ़ रहा है
एक-एक अंग
वस्त्र-आभूषण
उसके हाथों में क़ैद है ईश्वर की मुस्कान
वह चाहे तो बना दे ईश्वर की रोनी सूरत
ईश्वर उसका क्या बिगाड़ लेगा
वह तो उसका विधाता है पृथ्वी पर