"बहुत कुछ बचा रहेगा / प्रेमचन्द गांधी" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमचन्द गांधी |संग्रह= }} <Poem> वैज्ञानिक कह चुके ...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:20, 31 मई 2009 के समय का अवतरण
वैज्ञानिक कह चुके हैं
नष्ट हो जायेगी एक दिन पृथ्वी
जैसे नष्ट हुआ था मंगल
हम नहीं बचेंगे इस रूप में
नष्ट होती हुई पृथ्वी को देखने
फिर भी बचा रहेगा बहुत कुछ
इस नष्ट और उजाड़ पृथ्वी के आँगन में
मसलन बचा रहेगा प्रेम का वह तत्व
जो हमने इस पृथ्वी पर पैदा किया
जहाँ कहीं पड़े थे
हमारे दो जोड़ी-पैरों के निशान
वहाँ की मिट्टी में हमारा अहसास बचा रहेगा
जिस पेड़ की छाँव में जिस घास पर जिस पत्थर पर
हम बैठे थे कभी साथ-साथ
वहाँ हमारे होने की ख़ुशबू बची रहेगी
साथ बिताये अहसास में हमने
जो शब्द उच्चारे थे साथ-साथ
उनकी ध्वनियाँ बची रहेंगी
उन स्पर्शों की गरमाहट बची रहेगी
जो हमने कभी किये ही नहीं
उन चुम्बनों की मिठास बची रहेगी
जो हमने कभी लिये ही नहीं
आँखों के परदे पर
एक दूसरे की तस्वीर देखने का सुख बचा रहेगा
वे तस्वीरें बची रहेंगी
जो हमारी आँखों ने उतारीं
वह चमक बची रहेगी
जो आँखों में व्याप्त रहती थी
उस पृथ्वी ने जितने झेले कष्ट
उन कष्टों का होना बचा रहेगा
करोड़ों आँखों के अविरल बहे आँसुओं की
आर्द्रता बची रहेगी
स्त्रियों, बच्चों और तमाम दुखियारों की
चीखें बची रहेंगी
उन सपनों की छवियाँ बची रहेंगी
जिन्हें मनुष्य कभी पूरा नहीं कर पाया
मनुष्य के प्रयत्नों के पसीने की
गन्ध बची रहेगी
वैज्ञानिकों से जाकर कह दो
पृथ्वी के नष्ट होने के बाद भी
बहुत कुछ बचा रहेगा और
इसमें इन्सान कुछ नहीं कर सकेगा