भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ज़िन्दगी मछली है जैसे / अश्वघोष" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अश्वघोष |संग्रह=जेबों में डर / अश्वघोष }}[[Category:गज़...)
 
पंक्ति 10: पंक्ति 10:
 
ये समझना-जानना है आपको हर हाल में।
 
ये समझना-जानना है आपको हर हाल में।
  
 +
जो मिली इमदाद उसको खा गए सरपंच जी,
 +
देर तक चर्चा हुआ ये गाँव की चौपाल में।
  
 +
न्याय की आशा न करना, चौधरी से गाँव के
 +
वो तो बस एक भेड़िया है आदमी की खाल में।
 +
 +
भूख भी क्या चीज है. गुस्सा भी है, फ़रियाद भी
 +
भूख ने ही चेतना को बल दिया हर काल में।
 
</poem>
 
</poem>

23:25, 31 मई 2009 का अवतरण

ज़िन्दगी मछली है जैसे मुफ़लिसी के जाल में।
कूद जाने को तड़पती है समय के जाल में।

जेब का इतिहास ही तो पेट का भूगोल है,
ये समझना-जानना है आपको हर हाल में।

जो मिली इमदाद उसको खा गए सरपंच जी,
देर तक चर्चा हुआ ये गाँव की चौपाल में।

न्याय की आशा न करना, चौधरी से गाँव के
वो तो बस एक भेड़िया है आदमी की खाल में।

भूख भी क्या चीज है. गुस्सा भी है, फ़रियाद भी
भूख ने ही चेतना को बल दिया हर काल में।