भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"खाये पान बीरी सी बिलोचन विराजैँ आज / पद्माकर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पद्माकर }} <poem> खाये पान बीरी सी बिलोचन विराजैँ आज...)
 
 
पंक्ति 15: पंक्ति 15:
  
  
'''पद्माकर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मलहोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।
+
'''पद्माकर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।
 
</Poem>
 
</Poem>

10:46, 3 जून 2009 के समय का अवतरण

खाये पान बीरी सी बिलोचन विराजैँ आज ,
अँजन अंजाये अधराधर अमी के हैँ ।
कहै पदमाकर गुनाकर गुबिन्द देखौ ,
आरसी लै अमल कपोल किन पी के हैँ ।
ऎसो अवलोकिबेई लायक मुखारबिन्द ,
जाहि लखि चन्द अरविन्द होत फीके हैँ ।
प्रेम रस पागि जागि आये अनुरागि यातेँ ,
अब हम जानी कै हमारे भाग नीके हैँ ।


पद्माकर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।