भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बैर प्रीति करिबे की मन में न राखै सँक / ठाकुर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) छो () |
(कोई अंतर नहीं)
|
02:56, 17 जून 2009 के समय का अवतरण
बैर प्रीति करिबे की मन में न राखै सक॥
राजा राव देखि कै न छाती धक धाकरी।
आपनी उमँग की निबाहिबे की चाह जिन्हें॥
एक सों दिखात तिन्हें बाघ और बाकरी।
ठाकुर कहत मैं बिचार कै बिचार देखौ॥
यहै मरदानन की टेक बात आकरी।
गही जौन गही जौन छोरी तौन छोर दई॥
करी तौन करी बात नाकरी सो नाकरी॥
ठाकुर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।