भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वो जोश ख़ैरगी है तमाशा कहें जिस / जोश मलीहाबादी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जोश मलीहाबादी }}वो जोश ख़ैरगी है तमाशा कहें जिसे<br> बेपर...)
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=जोश मलीहाबादी
 
|रचनाकार=जोश मलीहाबादी
}}वो जोश ख़ैरगी है तमाशा कहें जिसे<br>
+
}}
 +
 
 +
वो जोश ख़ैरगी है तमाशा कहें जिसे<br>
 
बेपरदा यूँ हुए हैं के परदा कहें जिसे<br><br>
 
बेपरदा यूँ हुए हैं के परदा कहें जिसे<br><br>
  
अल्लाहरे ख़ाकसारिए रिनदाँने बादा ख्वार <br>
+
अल्लाह रे ख़ाकसारिए रिंदाँने बादाख्वार <br>
रश्के ग़ुरूरो क़ैसरो कसरा कहें जिसे<br><br>
+
रश्क-ए-ग़ुरूर-ओ-क़ैसर-ओ-कसरा कहें जिसे<br><br>
  
 
बिजली गिरी वो दिल पे जिगर तक उतर गई<br>
 
बिजली गिरी वो दिल पे जिगर तक उतर गई<br>
इस चर्ख़े नाज़ से क़दे बाला कहें जिसे<br><br>
+
इस चर्ख़-ए-नाज़ से क़द-ए-बाला कहें जिसे<br><br>
  
ज़ुल्फ़े हयात नोएबशर में है आज तक <br>
+
ज़ुल्फ़-ए-हयात नोएबशर में है आज तक <br>
ज़ख़्मे गुनाहे आदम ओ हव्वा कहें जिसे<br><br>
+
ज़ख़्म-ए-गुनाह-ए-आदम--हव्वा कहें जिसे<br><br>
  
 
कितनी हक़ीक़तों से फ़ज़ूँतर है वो फ़रेब <br>
 
कितनी हक़ीक़तों से फ़ज़ूँतर है वो फ़रेब <br>
दिल की ज़ुबाँ में वाद ए फ़रदा कहें जिसे<br><br>
+
दिल की ज़ुबाँ में वादा--फ़रदा कहें जिसे<br><br>
  
मेरा लक़ब है जिसका लक़ब है शमीमे ज़ुल्फ़ <br>
+
मेरा लक़ब है जिसका लक़ब है शमीम-ए-ज़ुल्फ़ <br>
मेरी नज़र है चेहरा ए ज़ेबा कहें जिसे<br><br>
+
मेरी नज़र है चेहरा--ज़ेबा कहें जिसे<br><br>
  
लो आ रहा है वो कोई मस्तेख़राम से <br>
+
लो आ रहा है वो कोई मस्त-ए-ख़राम से <br>
इस चाल से के लरज़िशे सेहबा कहें जिसे<br><br>
+
इस चाल से के लरज़िश-ए-सेहबा कहें जिसे<br><br>
  
तेरे निशाते ख़ाना ए अमरोज़ में नहीं <br>
+
तेरे निशात-ए-ख़ाना--अमरोज़ में नहीं <br>
वो बुज़दिली के ख़तरा ए फ़रदा कहें जिसे <br><br>
+
वो बुज़दिली के ख़तरा--फ़रदा कहें जिसे <br><br>
  
 
ख़ंजर है जोश हाथ में दामन लहू से तर<br>
 
ख़ंजर है जोश हाथ में दामन लहू से तर<br>
 
ये उसके तौर हैं के मसीहा कहें जिसे
 
ये उसके तौर हैं के मसीहा कहें जिसे

22:43, 20 जून 2009 का अवतरण

वो जोश ख़ैरगी है तमाशा कहें जिसे
बेपरदा यूँ हुए हैं के परदा कहें जिसे

अल्लाह रे ख़ाकसारिए रिंदाँने बादाख्वार
रश्क-ए-ग़ुरूर-ओ-क़ैसर-ओ-कसरा कहें जिसे

बिजली गिरी वो दिल पे जिगर तक उतर गई
इस चर्ख़-ए-नाज़ से क़द-ए-बाला कहें जिसे

ज़ुल्फ़-ए-हयात नोएबशर में है आज तक
ज़ख़्म-ए-गुनाह-ए-आदम-ओ-हव्वा कहें जिसे

कितनी हक़ीक़तों से फ़ज़ूँतर है वो फ़रेब
दिल की ज़ुबाँ में वादा-ए-फ़रदा कहें जिसे

मेरा लक़ब है जिसका लक़ब है शमीम-ए-ज़ुल्फ़
मेरी नज़र है चेहरा-ए-ज़ेबा कहें जिसे

लो आ रहा है वो कोई मस्त-ए-ख़राम से
इस चाल से के लरज़िश-ए-सेहबा कहें जिसे

तेरे निशात-ए-ख़ाना-ए-अमरोज़ में नहीं
वो बुज़दिली के ख़तरा-ए-फ़रदा कहें जिसे

ख़ंजर है जोश हाथ में दामन लहू से तर
ये उसके तौर हैं के मसीहा कहें जिसे