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"अपने से बाहर / लीलाधर जगूड़ी" के अवतरणों में अंतर

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घाटी में था तो
शिखर सुन्दर दिखता था
शिखर पर पहुंचा
तो बहुत सुन्दर दिख रही घाटी.

अपने से बाहर जहां से भी देखो
दूसरा ही सुन्दर दिखता है.