भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दाँव-पेंच में / शील" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार= शील }} <poem> तीन दशक बीते, घट रीते के रीते रहे घाले र...)
 
(कोई अंतर नहीं)

14:16, 30 जून 2009 के समय का अवतरण

तीन दशक बीते, घट रीते के रीते रहे
घाले रहे शासक, कुचक्र ऐंच-खेंच में।
वाह री स्वतन्त्रता, फूले-फले छल-फरेब
लानत-हविश, शेखी-सूरत की हेच में,
केंचुए करोच रहे संसद की राजनीति
लगा रहे अनतुले सदाचार बेच में।
गांधी और नेहरू की दुही गई बूढ़ी भैंस
दलदल में धँसी, फँसी है दाँव-पेंच में।