भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सौ-सौ सूरज / किरण मल्होत्रा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=किरण मल्होत्रा }} <poem> रात के गहन अंधेरे में सूरज ...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
02:28, 4 जुलाई 2009 के समय का अवतरण
रात के
गहन अंधेरे में
सूरज
अपना वादा
तोड़कर
चांद को
यूँ अकेला
छोड़कर
चल दिया
नज़र के
आसमान से दूर
देखता रहा
चांद
उसके मिटते
निशान को
हर पल
मद्धम हो रहे
उसके प्रकाश को
उसके हर
क़दम के साथ
उसने
एक उम्मीद बांधी
अपने प्रेम की
बेड़ी के साथ
उसके
क़दमों के नीचे
सपनों की नींव डाली
वो कदम
तो नहीं लौटे
जो उस रात
नहीं रूके थे
लेकिन
सपनों के बीजों से
एक घना पेड़
उग आया
जिस पर
एक नहीं
सौ-सौ सूरज उगे थे