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"राज ठाकरे के लिये / संध्या गुप्ता" के अवतरणों में अंतर
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21:45, 4 जुलाई 2009 का अवतरण
कुम्हार ने मिट्टी के ढेलों को पहले तोड़ा
फिर उन्हें बारीक किया और पानी डाल कर भिगोया
मिट्टी को पैरों से खूब रौंदने के बाद
उसे हाथों से कमाया
मिट्टी घुल-मिल कर एक हो गई
बिलकुल गुंधे हुए आटे की तरह
कमाई हुई मिट्टी को कुम्हार ने चाक पर रखा
एक डंडे के सहारे चाक को गति दी
इतनी गति की वह हवा से बातें करने लगा
चाक पर रखी मिट्टी को कुम्हार के कुशल हाथ
आकृतियाँ देने लगे
मिटटी सृजन के उपक्रम में भिन्न-भिन्न
आकृतियों में ढलती गई
पास ही रेत का ढेर पड़ा था...
कुम्हार नहीं बनाता रेत से बर्तन
रेत के कण आपस में कभी
पैवस्त नहीं हो सकते !