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"वक़्त का जादू / मुकेश मानस" के अवतरणों में अंतर

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19:26, 5 जुलाई 2009 का अवतरण

भोले-भाले मासूम बच्चे
खेलते-खेलते गायब हो जाएं
 
अल्ल-सुबह घूमने निकले बुजुर्ग
लौटकर घर न आएं
 
चहकती-महकती लड़कियां
ख़ौफ़ज़दा पुतलियों में बदल जाएं
 
देखते-देखते खुशबूदार फूल
धारदार शूल बन जाएं
 
हमने पहले तो नहीं देखा
भई वाह!
कैसा जबरदस्त जादू है
जो यह वक्त हमें दिखा रहा है।

रचनाकाल : जून 2000