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"ढीठ चांदनी / धर्मवीर भारती" के अवतरणों में अंतर
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01:18, 13 जुलाई 2009 का अवतरण
आज-कल तमाम रात
चांदनी जगाती है
मुँह पर दे-दे छींटे
अधखुले झरोखे से
अन्दर आ जाती है
दबे पाँव धोखे से
माथा छू
निंदिया उचटाती है
बाहर ले जाती है
घंटो बतियाती है
ठंडी-ठंडी छत पर
लिपट-लिपट जाती है
विह्वल मदमाती है
बावरिया बिना बात?
आजकल तमाम रात
चांदनी जगाती है