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00:41, 14 जुलाई 2009 के समय का अवतरण

बट्टू जी के लिए

हम दोनों अभी तक चलते-फिरते हैं
लोगबाग़ आते हैं हमारे पास
हम भी मिलते-जुलते रहते हैं
एक हौल बैठ गया है मगर मन में
कि यह सब बेकार है
हममें से किसी को न जाने कब
जाना पड़ जा सकता है
हम दोनों अकेले रह जाने को
तैयार नहीं।

(बट्टू जी यानी कवि-पत्नी विमलेश्वरी सहाय)