भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ठंड / इला प्रसाद" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इला प्रसाद }} <poem> दरवाज़ा खोला तो ठंड दरवाज़े पर, ...)
(कोई अंतर नहीं)

13:12, 14 जुलाई 2009 का अवतरण

दरवाज़ा खोला
तो ठंड दरवाज़े पर,
बाँहें खोले -
आगे बढ़,
भेंटने को तैयार।

हवा घबराई-सी
इधर उधर पत्ते बुहारती,
ख़बरदार करती
घूम रही थी।

निकलूँ न निकलूँ का असमंजस फलाँग
मैं जैसे ही आई
ठंड के आगोश में
एक थप्पड़ लगा
झुँझलाई हुई हवा का -
"मना किया था न!"

और सूरज -
बादलों को भेद,
मुसकुरा उठा!