भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ज़माना ख़ुदा को खु़दा जानता है / यगाना चंगेज़ी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: ज़माना खु़दा को ख़ुदा जानता है। \ यही जानता है तो क्या जानता है॥ व...)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
ज़माना खु़दा को ख़ुदा जानता है।
 
ज़माना खु़दा को ख़ुदा जानता है।
\
+
 
 
यही जानता है तो क्या जानता है॥
 
यही जानता है तो क्या जानता है॥
  

15:29, 14 जुलाई 2009 का अवतरण

ज़माना खु़दा को ख़ुदा जानता है।

यही जानता है तो क्या जानता है॥


वो क्यों सर खपाए तेरी जुस्तजू में।

जो अंजामे-फ़िक्रेरसा जानता है॥

ख़ुदा ऐसे बंदों से क्यों फिर न जाए।

जो बैठा हुआ माँगना जानता है॥


वो क्यों फूल तोड़े वो क्यों फूल सूँघे?

जो दिल का दुखाना बुरा जानता है॥