भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कुछ लोग / विमल कुमार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विमल कुमार |संग्रह=यह मुखौटा किसका है / विमल कुम...)
 
(कोई अंतर नहीं)

10:36, 20 जुलाई 2009 के समय का अवतरण

हम लोग एक ऐसे शहर में रह रहे हैं
जहाँ इमारतों का रंग भूरा हो गया है
और उनका स्थापत्य बदल गया है

उन इमारतों में ही रोज़ कोई न कोई छिप रहा है
फिर अपनी आत्मा तक बेच रहा है

यह सही है कि शहर के लोग भूलते जा रहे हैं
एक-दूसरे का नाम
वे तेज़ी से चल रहे हैं सड़कों पर
एक दूसरे को धकियाते

एक कोने में शरीफ़ लोग
हर फीकी चीज़ पर
अपना रंग छिड़क रहे हैं
और भूरे रंग को
शहर से मिटाने की कोशिश कर रहे हैं