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नगर के वक्ष में
खंजर की तरह धँसा इसका स्तम्भ
रक्त सारा यमुना में गिरता लगातार
ऊँचे भवनों से झाँकते रहस्यमय प्राणी
यहीं छपते समाचारपत्र रात-दिन
बस दुर्घटनाओं में मरते शिशुगण
करती माताएँ विलाप
अहंकार में डूबे अधिकारी
यश-कामना में लिप्त तीन-चार साहित्यकर
तीव्र प्रकाश में दम तोड़ती शताब्दी
यह किसका नाटक है
सम्वादों की जगह सिर्फ़ अट्टहास!