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10:41, 20 जुलाई 2009 के समय का अवतरण

नगर के वक्ष में
खंजर की तरह धँसा इसका स्तम्भ
रक्त सारा यमुना में गिरता लगातार
ऊँचे भवनों से झाँकते रहस्यमय प्राणी
यहीं छपते समाचारपत्र रात-दिन
बस दुर्घटनाओं में मरते शिशुगण
करती माताएँ विलाप

अहंकार में डूबे अधिकारी
यश-कामना में लिप्त तीन-चार साहित्यकर
तीव्र प्रकाश में दम तोड़ती शताब्दी
यह किसका नाटक है
सम्वादों की जगह सिर्फ़ अट्टहास!