भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"नहीं निहारा / रमेश कौशिक" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश कौशिक |संग्रह=चाहते तो... / रमेश कौशिक }} <poem> जो ...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:05, 22 जुलाई 2009 का अवतरण
जो कुछ भी घटा है
या
घटता जा रहा है
उस सबके पीछे
कहीं न कहीं
मेरा हाथ रहा है
लेकिन इसको मैंने
कभी नहीं
स्वीकारा
क्योंकि
मेरे हाथों ने
जो कुछ किया
उसे कभी
मेरी आँखों ने
नहीं निहारा