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"सुरझी नहिं केतो उपाइ कियौ / ठाकुर" के अवतरणों में अंतर

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03:51, 28 जुलाई 2009 के समय का अवतरण

सुरझी नहिं केतो उपाइ कियौ, उरझी हुती घूंघट खोलन पै।
अधरान पै नेक खगी ही हुती, अटकी हुती माधुरी बोलन पै॥
कवि 'ठाकुर लोचन नासिका पै, मंडराइ रही हुती डोलन पै।
ठहरै नहिं डीठि, फिरै ठठकी, इन गोरे कपोलन गोलन पै॥