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"इन्सान / रमानाथ अवस्थी" के अवतरणों में अंतर

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20:06, 28 जुलाई 2009 का अवतरण

मैंने तोडा फूल, किसी ने कहा-
फूल की तरह जियो औ मरो
सदा इंसान।

भूलकर वसुधा का शृंगार,
सेज पर सोया जब संसार,
दीप कुछ कहे बिना ही जला-
रातभर तम पी-पीकर पला-
दीप को देख, भर गए नयन
उसी क्षण-
बुझा दिया जब दीप, किसी ने कहा
दीप की तरह जलो, तम हरो
सदा इंसान।

रात से कहने मन की बात,
चंद्रमा जागा सारी रात,
भूमि की सूनी डगर निहार,
डाल आंसू चुपके दो-चार

डूबने लगे नखत बेहाल
उसी क्षण-
छिपा गगन में चांद, किसी ने कहा-
चांद की तरह, जलन तुम हरो
सदा इंसान।

सांस-सी दुर्बल लहरें देख,
पवन ने लिखा जलद को लेख,
पपीहा की प्यासी आवाज,
हिलाने लगी इंद्र का राज,

धरा का कण्ठ सींचने हेतु
उसी क्षण -
बरसे झुक-झुक मेघ, किसी ने कहा-
मेघ की तरह प्यास तुम हरो
सदा इंसान।