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प्रान पियारो मिल्यो सपने मैं, परी जब नैंसुक नींद निहोरैं।
कंत को आगम ज्यों ही जगाय, कह्यो सखी बोल पियूष निचोरैं॥
यों 'मतिराम भयो हिय मैं सुख, बाल के बालम सों दृग जोरैं।
जैसे मिहीं पट मैं चटकीलो, चढै रंग तीसरी बार के बोरैं॥