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"कुंदन को रँगु फीको लगै / मतिराम" के अवतरणों में अंतर
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कुंदन को रँगु फीको लगै, झलकै अति अंगन चारु गुराई।
ऑंखिन में अलसानि चितौन में, मंजु बिलासन की सरसाई॥
को बिन मोल बिकात नहीं, 'मतिराम कहै मुसकानि मिठाई।
ज्यों-ज्यों निहारिए नेरे ह्वै नैननि, त्यौं-त्यौं खरी निकसै सी निकाई॥