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गोविंद स्वामी अष्टछाप के अंतिम कवि थे। ये भरतपुर के ओतरा वासी सनाढय ब्राह्मण थे। इन्हे विट्ठलनाथजी ने दीक्षा दी थी। संसार से विरक्त होकर ये गोवर्धन चले गए। वहाँ गिरिराज की कदमखाडी पर ही ये निवास करने लगे। राग सागरोद्भव, राग कल्पद्रुम, राग रत्नाकर तथा अन्य संग्रहों में कुल मिलाकर इनके 257 पद मिलते हैं। इनमें भाव की गहनता एवं अभिव्यक्ति का अनूठापन है। ये कुशल गायक भी थे।