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"विदा करने निकली जब माता / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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+ | ::इस घर से ही नाता ! |
18:31, 31 जुलाई 2009 का अवतरण
विदा करने निकली जब माता
पग से लिपट रो पड़ी बहुएं
- न्याय यही कहलाता ?
हमने बचपन साथ बिताये
ब्याह हुआ संग संग पति पाये
सीता को ही दुःख दिखलाये
- क्यों नित नए विधाता ?
कोमल चित थे जेठ हमारे
बंधु खड़े क्यों चुप्पी धारे
छिपे कहाँ वे ऋषि मुनि सारे
- कोई तो समझाता !
तब वन में था बल स्वामी का
सिर पर था न अयश का टीका
अब तो छूट रहा भगिनी का
- इस घर से ही नाता !