भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अनमने दिन / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
					
										
					
					| अनिल जनविजय  (चर्चा | योगदान) | अनिल जनविजय  (चर्चा | योगदान)  | ||
| पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
| <Poem> | <Poem> | ||
| दिन बीते | दिन बीते | ||
| − | रीते रीते | + | रीते-रीते | 
| इन सूनी राहों पे | इन सूनी राहों पे | ||
12:57, 3 अगस्त 2009 का अवतरण
दिन बीते
रीते-रीते
इन सूनी राहों पे
मिला न कोई राही
बना न कोई साथी
वन सूखे चाहों के
याद न कोई आता
न मन को कोई भाता
घेरे खाली हैं बाहों के
कलप रहा है तन
जैसे भू-अगन
दिन आए फिर कराहों के
(रचनाकाल : 2005)
 
	
	

