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"करने लगेगा बात वोह भी सोचकर / प्रेम भारद्वाज" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार=प्रेम भारद्वाज
 
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07:09, 5 अगस्त 2009 के समय का अवतरण

करने लगेगा बात वह भी सोचकर
रोटियाँ उसको मिली जो पेट भर

अब मदारी को नचाएगा ज़रूर
हद से ज़्यादा पढ़ गया है जानवर

दूर क्या कर पाएगा बीमारियाँ
रोग के फंदे में ख़ुद है डॉक्टर

आम गिनती में न था उसका शुमार
बाढ़ सूख़े में मरा जो ख़ासकर

कद का बौनापन कहाँ देखा गया
बाप की ऊँची पहुँच को देखकर

आदमी को डाल दी उसने नुकेल
आदमी को आदमी से तोड़कर

आज ये फंदा उसे डल जाएगा
जिसके गले में आ गया यह नापकर

कौन समझेगा ये तेरी चुप्पियाँ
तू भी कुछ तो चीख ठंडी आह भर

जा बसेंगे दूरे ये तीतर बटेर
बन रही हैं सड़कें जंगल काट कर

नाम पर पीपल के बच्चों को यहाँ
रह गये दिखा कर हम पापलर

बरगदों की ओट जो पलता रहा
उस पुराने प्रेम की बातें न कर