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राम तोरी माया नाचु नचावै।
निसु वासर मेरो मनुवाँ ब्याकुल, सुमिरन सुधि नहिं आवै॥
जोरत तुरै नेह सुत मेरो, निरवारत अरुझावै।
केहि बिधि भजन करौं मोरे साहिब, बरबस मोहिं सतावै॥
सत सनमुख थिर रहे न पावै, इत-उत चितहिं डुलावै।
आरत पँवरि पुकारौं साहिब, जन फिरि यादहिं पावै॥
थाकेउँ 'जनम-जनम के नाचत, अब मोहि नाच न भावै।
'दूलनदास के गुरु दयाल तुम, किरपहिं ते बनि आवै॥