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किशनगढ नरेश महाराज सावंतसिंह ही नागरीदास के नाम से कवि के रूप में प्रसिध्द हुए। ये बडे योग्य और पराक्रमी थे, किंतु गृह-कलह के कारण इन्हें राजपाट से वैराग्य हो गया और अपने पुत्र सरदारसिंह को राजगद्दी देकर ये स्वयं वृंदावन चले गए। नागरीदास के 75 ग्रंथ बताए जाते हैं जिनमें अधिकांश 'नागर समुच्चय में प्रकाशित हैं। इनकी रचनाओं में माधुर्य-भाव की प्रधानता है, जिस पर सूफी प्रेम-दर्शन का प्रभाव जान पडता है।