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"बोलनि ही औरैं कछू / नागरीदास" के अवतरणों में अंतर
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बोलनि ही औरैं कछू, रसिक सभा की मानि।
मतिवारे समझै नहीं, मतवारे लैं जानि।
मतवारे लैं जानि आन कौं वस्तु न सूझै।
ज्यौ गूंगे को सैन कोउ गूंगो ही बूझै॥
भीजि रहे गुरु कृपा, बचन रस गागरि ढोलनि।
तनक सुनत गरि जात सयानप अलबल बोलनि॥