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नारायण हरि भक्त की, प्रथम यही पहचान।
आप अमानी ह्वै रहै देत और को मान॥

कपट गांठि मन में नहीं, सब सों सरल सुभाव।
नारायन ता भक्त की, लगी किनारे नाव॥

दसन पांति मोतियन लरी, अधर ललाई पान।
ताहूं पै हंसि हेरिबो, को लखि बचै सुजान॥

मृदु मुसक्यान निहारि कै, धीर धरत है कौन।
नारायण कै तन तजै, कै बौरा कै मौन॥